Wednesday 7 January 2015





तुम देखो हो जब भी दर्पण , दर्पण खुद  इतरा जाता  है ,
झांक  तुम्हारे  नयनों  में , दुल्हन  सा  शरमा  जाता  है I
घिरती  सनम घटाएं  कैसे , सावन  कैसे  आ  जाता  है ,
क्या होती है प्यास किसी की , कैसे कोई बुझा पाता है I
तुम देखो हो जब भी दर्पण ...........................
झांक तुम्हारे नयनों में   ………………………….........
फूल खिले मधुवन में कैसे , कसक उठे है मन में  कैसे ,
बहती हवा आँगन में कैसे , अगन जले है मन में  कैसे ,
झांक  तुम्हारे  नयनों   में , सारे  उत्तर  पा  जाता  है I
तुम देखो हो जब भी दर्पण ..........................
झांक तुम्हारे नयनों में    ……………………….........
जब देखे वह रूप तुम्हारा, मन ही मन मुस्का  जाता है ,
प्यार का चुम्बन कैसे होता, होंठों  से यह  पा जाता  है ,
डूब   तुम्हारे नयनों   में , दुल्हन  सा  शरमा  जाता है I 
तुम देखो हो जब भी दर्पण ...........................
झांक तुम्हारे नयनों में  ………………………….........
अंगड़ाई  आती   है  कैसे , सपनों    के   गलियारों  में ,
पथिक  डूब  जाता  है कैसे, बीड़ा  के  सुन्दर  तारों में ,
डूब   तुम्हारे नयनों   में, दुल्हन  सा शरमा  जाता  है I
तुम देखो हो जब भी दर्पण ...........................
झांक तुम्हारे नयनों में  ………………………….........
मुस्काया   जाता  है   कैसे , शरमाया  जाता  है  कैसे ,
यही सीखने के लालच में , वह भी खुद शर्मा जाता है , 
डूब  तुम्हारे  नयनों   में , दुल्हन  सा  शरमा  जाता है I 
तुम देखो हो जब भी दर्पण ...........................
झांक तुम्हारे नयनों में  ………………………….........

                            

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