Wednesday 10 June 2015


अपनी ज़ुल्फ़ों को खोल दे फिर से,
मैं  तो  आदी  हूँ ज़ुल्म सहने का.
          नज़रे दरिया को उठा ले ए दोस्त ,
          मैं  तो आदी  हूँ यूँ  ही  बहने का .
मेरी  खामोश  आवाज़ें  सुन  ले ,
मैं  तो  आदी हूँ यूँ  ही  कहने का .
          तू दे ग़म या तू खुशी दे मुझको ,
          मैं  तो  आदी  हूँ यूँ ही रहने का .
अपने  होंटों  को इजाज़त दे  दे , 
मैं  तो  आदी  हूँ ज़हर पीने का .
          सिलसिले खुआबों के टूटें बेशक,
          मैं  तो आदी हूँ मगर  जीने   का.