अपनी ज़ुल्फ़ों को खोल दे फिर से,
मैं तो आदी हूँ ज़ुल्म सहने का.
नज़रे दरिया को उठा ले ए दोस्त ,
मैं तो आदी हूँ यूँ ही बहने का .
मेरी खामोश आवाज़ें सुन ले ,
मैं तो आदी हूँ यूँ ही कहने का .
तू दे ग़म या तू खुशी दे मुझको ,
मैं तो आदी हूँ यूँ ही रहने का .
अपने होंटों को इजाज़त दे दे ,
मैं तो आदी हूँ ज़हर पीने का .
सिलसिले खुआबों के टूटें बेशक,
मैं तो आदी हूँ मगर जीने का.