शबनम, कभी शोला, कभी बरसात लगे है ,
हँसता है तो वह प्यार की सौग़ात लगे है I
उलझे हुए ज़हनों में घटाओं सा लगे है ,
बाहों में आए प्यार का एहसास लगे है I
उठती हुई लहरों में नदिओं की वह अक्सर ,
मौजों की किनारों से मुलाक़ात लगे है I
शिद्दत है यह कैसी कोई अंदाज़ा लगाए ,
पीकर भी समंदर को मुझे प्यास लगे है I
दीवानगी कैसी है समझ में नहीं आता ,
धड़कन में मुझे नग़मे सा एक साज़ लगे है I
खुशबू जो बिखरती है फ़िज़ाओं अब अक्सर ,
कलिओं के भी खिलने में मुझे राज़ लगे है I