Monday 13 April 2015


शबनम, कभी शोला, कभी  बरसात  लगे है ,
हँसता है तो  वह  प्यार की सौग़ात  लगे है I 
        उलझे  हुए  ज़हनों  में घटाओं  सा लगे है ,
        बाहों में आए  प्यार  का  एहसास लगे  है I 
उठती हुई लहरों में नदिओं  की वह अक्सर ,
मौजों  की किनारों  से  मुलाक़ात लगे  है I 
        शिद्दत है  यह  कैसी  कोई  अंदाज़ा लगाए ,
        पीकर  भी  समंदर  को मुझे प्यास लगे है I 
दीवानगी  कैसी  है समझ  में  नहीं  आता , 
धड़कन में मुझे  नग़मे सा एक साज़ लगे है I 
        खुशबू जो बिखरती है फ़िज़ाओं  अब अक्सर ,
        कलिओं  के भी खिलने में मुझे राज़ लगे है I  


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