Sunday 18 January 2015


             तू जो आता है संबरता है दिल ,
             तू जो जाता है सिहर जाता हूँ I
यह   कैसी  प्यास  है  बुझती   नहीं   कुछ   भी   पीकर ,
यह  कैसी  चाहत  है  रुकती  नहीं  कुछ  भी  सह  कर I
अजनबी  हादसों  से घबराकर ऐसा बेताब  हूँ दीवाना हूँ ,
तिश्नगी ऐसी  समंदर पी लूँ बेबसी  है की  ठहर  जाता हूँ I
             तू जो आता है संबरता है दिल,
             तू जो जाता है सिहर जाता हूँ I  
भूल   भी   जा   मुझे    गुज़रे   हुए   मौसम   की  तरह ,
याद   न   कर   मुझे   सूखे    हुए   सावन   की   तरह I
मैं  चाहूंगा भुला कर देखूं प्यार के घर को जला कर देखूं ,
तूने सजा रख्खी है ऐसी डगर बेबसी है कि गुज़र जाता हूँ I
             तू जो आता है संबरता है दिल ,
             तू जो जाता है सिहर  जाता हूँ I           

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