Monday 2 February 2015


बेज़ुबानी भी कहा करती है क़िस्सा दिल  का ,
आ  किसी  लफ्ज़  को होंठों  में दबाकर  देखें I
              आ किसी प्यार को पलकों पर बिठा कर  देखें ,
              आ  किसी  प्यास  को शोलों से बुझा कर देखें I
तूने चाहा न सही मैने तुझे  चाहा है  लम्हा 2 ,
आ किसी ख़्वाब को सदिओं में समा कर देखें I
             दिल  की  बेताबिओं, तन्हाईओं के  मौसम में ,
             आ किसी आस को अँखिओं में सजा कर देखें I
खूने  दिल  देकर  जिन्हें सींचा था मैने  बरसों ,
आ  उन्हीं  फूलों को नदिओं  में बहा कर देखें I
             खेल क़िस्मत का सही दर्द सफर का है तबील ,
             आ   इसी  हाल  में यादों   को भुला  कर देखें I

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