बेज़ुबानी भी कहा करती है क़िस्सा दिल का ,
आ किसी लफ्ज़ को होंठों में दबाकर देखें I
आ किसी प्यार को पलकों पर बिठा कर देखें ,
आ किसी प्यास को शोलों से बुझा कर देखें I
तूने चाहा न सही मैने तुझे चाहा है लम्हा 2 ,
आ किसी ख़्वाब को सदिओं में समा कर देखें I
दिल की बेताबिओं, तन्हाईओं के मौसम में ,
आ किसी आस को अँखिओं में सजा कर देखें I
खूने दिल देकर जिन्हें सींचा था मैने बरसों ,
आ उन्हीं फूलों को नदिओं में बहा कर देखें I
खेल क़िस्मत का सही दर्द सफर का है तबील ,
आ इसी हाल में यादों को भुला कर देखें I
No comments:
Post a Comment