आप संगसार कर के रोते हैं ,
हम हैं पत्थर भी खा कर हँसते हैं I
आप क़तरों की बात करते हैं ,
हम हैं झरनो की बात करते हैं I
रोक कर आँख के सभी आंसू ,
हम हैं नख़रों की बात करते हैं I
आप संगसार कर के ………
हम हैं पत्थर भी खा ………
हर सितम फूल सा सजाकर हम ,
अपने दामन को साफ़ रखते हैं I
आप नींदों की बात करते हैं ,
हम हैं जगने की बात करते हैं I
आप संगसार कर के ……….
हम हैं पत्थर भी खा ………..
यह निशानी से कम नहीं ए दोस्त ,
आपके ज़ख्म साथ रखते हैं I
चंद लम्हों की बात क्या करना ,
हम हैं सदिओं का साथ रखते हैं I
आप संगसार कर के ……….
हम हैं पत्थर भी खा …………
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