Monday 17 August 2015


वफ़ाएं  इस  क़दर मिलती रही हैं इस ज़माने में ,
कोई  दामन  जलाता  है  कोई  दामन बचाता है I
      मैं  क्यूँ  शिकवा करूँ  दीवानगी  हद पर बैठा  हूँ ,
      सज़ाएं दिल को भाती हैं जो कोई दिल दुखाता है I
यह हाथों की लकीरें भी सिमट जाती हैं  मुठ्ठी मेँ ,
हर एक आकर हंसाता है वही पल पल रुलाता है I
      ए दरिया नाज़ ना कर अपने बहने पर तू क्या जाने ,
      मेरा  भी  हाल  ऐसा  है  यह  हर  आंसू  बताता है I
यह खामोशी, यह तन्हाई, यह रुस्वाई अमानत है ,
उसी  की जो की चुपके से मेरे ख्वाबो मेँ आता है I
     चलो  सब  भूल  जाते हैं वह लम्हे दर्द  के हमदम ,
     यह आशिक़ फिर से गर्दन को तेरे आगे झुकाता है I



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