वफ़ाएं इस क़दर
मिलती रही हैं इस ज़माने में ,
कोई दामन जलाता है कोई दामन बचाता है I
मैं
क्यूँ शिकवा करूँ दीवानगी
हद पर बैठा हूँ ,
सज़ाएं दिल को भाती हैं जो कोई दिल दुखाता है
I
यह
हाथों की लकीरें भी सिमट जाती हैं मुठ्ठी मेँ
,
हर
एक आकर हंसाता है वही पल पल रुलाता है I
ए दरिया
नाज़ ना कर अपने बहने पर तू क्या जाने ,
मेरा भी हाल ऐसा है यह हर आंसू बताता
है I
यह
खामोशी, यह तन्हाई, यह रुस्वाई अमानत है ,
उसी की जो की चुपके से मेरे ख्वाबो मेँ आता है I
चलो
सब भूल जाते हैं वह लम्हे दर्द के हमदम ,
यह आशिक़ फिर से गर्दन को तेरे आगे झुकाता है
I
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